ग़ज़ल
-चाँद शेरी
वहाँ पर अम्न क्या होगा, सुकूँ की बात क्या होगी?
‘जहाँ बारिश लहू की हो, वहाँ बरसात क्या होगी?’
कभी मेरठ, कभी दिल्ली, कभी पंजाब में कर्फ्यू,
भला इससे भी बिगड़ी सूरते-हालात क्या होगी?
जहाँ इंसाफ बिकता हो, जहाँ दौलत की पूजा हो,
वहाँ जिक्रे वफ़ा इंसानियत की बात क्या होगी?
गरीबी को मयस्सर सर अब न रोटी है न कपड़ा है,
ऐ आज़ादी तेरी इससे बड़ी सौग़ात क्या होगी?
तुझे ‘शेरी’ लहू देकर भी इस की लाज रखनी है,
वतन की आबरू पर जान की औक़ात क्या होगी?
अगर आपको 'हमराही' का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ। |
---|
4 टिप्पणियॉं:
जहाँ इंसाफ बिकता हो, जहाँ दौलत की पूजा हो,
वहाँ जिक्रे वफ़ा इंसानियत की बात क्या होगी?
बहुत उम्दा ग़ज़ल !!
Wah...Behtareen
karara vyang...satik
www.poeticprakash.com
तुझे ‘शेरी’ लहू देकर भी इस की लाज रखनी है,
वतन की आबरू पर जान की औक़ात क्या होगी?
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल शेर दाद को मुहताज नहीं फिर भी दिल से निकला वाह वाह ..
वाह ....जोशीली पंक्तियाँ ....
मेरा ब्लॉग पढने के लिए इस लिंक पे आयें.
http://dilkikashmakash.blogspot.com/
एक टिप्पणी भेजें